पुलिस को वोटर आईडी चेक करने का अधिकार नहीं, आतंकित अपमानित-जागरूक लोगों में चिंता व्याप्त

मुरादाबाद। चुनाव आयोग द्वारा आजादी के इतने वर्षों बाद भी प्रत्येक मतदाता को वोटर पहचान पत्र उपलब्ध न कराया जाना बुद्धिजीवी वर्ग के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। प्रत्येक चुनाव में बहुत सारे बीएलओ चुनाव लिस्ट की अपडेट के लिए लगाए जाते हैं। निर्वाचन पहचान पत्र बनाए जाने की जिम्मेदारी दी जाती है। तहसील, ब्लाक और जिले लेवल तक के अधिकारी इस काम में जुटे होते हैं।उसके बावजूद भी वोटर लिस्ट में त्रुटियां आती रहती हैं। किसी का नाम गायब हो जाता है। किसी के पिता का नाम गलत होता है। अभी तक इन सब के लिए किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हुई है। चुनाव खत्म होते ही सब कुछ ठंडे बस्ते में पड़ जाता है।

एक अनुमान के अनुसार लगभग 10% मतदाता वोटर लिस्ट और आईडी की गड़बड़ी के कारण मतदान करने से वंचित रह जाते हैं।अगला चुनाव आने पर फिर इसी तरह की तैयारी शुरू होती है। पिछले चुनाव में क्या-क्या त्रुटि हुई, क्या-क्या गलत हुआ, इस सब को लाल फीताशाही में बांधकर रख दिया जाता है। आजादी के बाद से यह क्रम लगातार चल रहा है। अभी तक प्रत्येक मतदाता को पहचान पत्र उपलब्ध नहीं हो सका है। जिसकी वजह से पहचान पत्र न होने की स्थिति में बहुत सी आईडी मतदाता को वोट डालने के लिए अधिग्रहित कर दी जाती हैं। जैसे पहचान पत्र दिखाकर, राशन कार्ड दिखाकर, कहीं कर्मचारी है तो वहां का परिचय पत्र दिखाकर और भी कई तरह की आईडी चुनाव आयोग द्वारा इस्तेमाल करने की परमिशन दी जाती है। यह देखने में तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन इसके दुष्परिणामों और चुनाव आयोग की नाकामी के बारे में आज तक कोई चिंतन नहीं किया गया। फोटो पहचान के अलावा जब कोई आईडी लेकर मतदाता वोट डालने जाता है तो वहां पुलिस फोर्स जो की सुरक्षा के लिए तैनात की जाती है, वह आईडी चेक करने लगती है। चुनाव आयोग इस पर कोई संज्ञान नहीं लेता।

बताते हैं कि पुलिस प्रशासन का झुकव वर्तमान सरकार के प्रति रहता है। कर्मचारी व छोटे अधिकारी,अपने बड़े अधिकारियों और बड़े अधिकारी मंत्रियों की सपोर्ट में दिखाई देते प्रतीत होते हैं। जबकि चुनाव आयोग का ऐसा कोई आदेश नहीं होता कि सुरक्षा में लगी पुलिस फोर्स किसी मतदाता का पहचान पत्र चेक करें। बहुत सारी घटनाएं सामने आती हैं। जहां आईडी न दिखाने पर पुलिस द्वारा मारा पीटा जाता है या आईडी गलत बता कर मिसबिहेव किया जाता है। जानकार लोग बता रहे हैं कि यह सिर्फ इसलिए होता है की चुनाव आयोग द्वारा आज तक वोटर पहचान पत्र हर वोटर को उपलब्ध नहीं कराया गया। इस विषय पर अब कुछ जागरूक लोग चिंतन करने लगे हैं। आने वाले सालों में यह मांग उठेगी की वोटर का पहचान पत्र न होने की स्थिति में उसके जिम्मेदार बीएलओ ब्लॉक निर्वाचन अधिकारी तहसील निर्वाचन अधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी को जिम्मेदार मानते हुए कार्रवाई की जाए। ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा के चुनाव तक की वोटर लिस्ट एक ही होनी चाहिए। चुनाव आयोग इस बात पर भी कभी कोई संज्ञान नहीं लेता कि जब नगर पालिका -नगर पंचायत के चुनाव में वोटर लिस्ट जारी होती है तो उसमें 10 से 20 हजार तक के वोट अधिक हो जाते हैं और जब एमएलए चुनाव की लिस्ट जारी होती है तो उसमें वह मतदाता घट जाते हैं। यह सब आंकड़े जिला निर्वाचन आयोग, राज्य निर्वाचन आयोग को जरूर भेजता होगा। लेकिन इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया। किसी पर कभी कोई कार्रवाई नहीं की जाती।

कहा जाए तो चुनाव आयोग का यह सब कुछ काम राम भरोसे चल रहा है। उसके आदेश का ठीक से पालन नहीं होता हैं। ना चुनाव आयोग की निष्पक्ष चुनाव कराने मंशा पूरी हो पाती है। अधिक मतदान होने का प्लान रेत के घरौंदे की तरह बिखर जाता है। क्योंकि चुनाव आयोग का आदेशों का क्रियान्वयन करने वाले वही मशीनरी होती है,जो किसी सरकार के अधीन काम कर रही होती है। पूरे मामले की जागरूक लोगों को चिंतन करने की जरूरत है। लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण पद्धति चुनाव प्रणाली को दुरुस्त करने की लिए एकजुट होकर संघर्ष करने की जरूरत है।

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